अंधविश्वास,डायन (टोनही) प्रताड़ना एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनजागरण

I have been working for the awareness against existing social evils,black magic and witchcraft that is prevalent all across the country and specially Chhattisgarh. I have been trying to devote myself into the development of scientific temperament among the mass since 1995. Through this blog I aim to educate and update the masses on the awful incidents & crime taking place in the name of witch craft & black magic all over the state.

Saturday, September 24, 2016

सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति बिलासपुर में
25 सितम्बर २०१६ को  धरना देगी
सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ सक्षम कानून बनाने की मांग
अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि हमारे यहाँ
सामाजिक और जातिगत स्तर पर सक्रिय पंचायतों द्वारा सामाजिक बहिष्कार के मामले
लगातार सामने आते रहते हैं। ग्रामीण अँचल में ऐसी घटनाएँ बहुतायत से होती है
जिसमें जाति व समाज से बाहर विवाह करने, समाज के मुखिया का कहना न मानने,
पंचायतों के मनमाने फरमान व फैसलों को सिर झुकाकर न पालन करने पर किसी व्यक्ति
या उसके पूरे परिवार को समाज व जाति से बहिष्कार कर दिया जाता है व उसका समाज
में हुक्का पानी बंद कर दिया जाता है। समिति सामाजिक बहिष्कार की घटनाओं के
विरोध में तथा इस संबंध में सक्षम कानून बनाने हेतु अभियान चला रही है।
सामाजिक बहिष्कार के प्रभावितों को न्याय दिलाने एवं बहिष्कार के विरोध में
प्रभावी कानून बनाने की मांग को लेकर समिति के सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ता एवं
प्रभावित नागरिकों का एकदिवसीय धरना रविवार 25 सितम्बर को दोपहर 12 बजे से 3
बजे तक नेहरू चौक, बिलासपुर में आयोजित किया जा रहा है।
डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि सामाजिक बहिष्कार होने से दंडित व्यक्ति व उसका
परिवार गाँव में बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। पूरे गाँव-समाज में कोई भी
व्यक्ति बहिष्कृत परिवार से न ही कोई बातचीत करता है और न ही उससे किसी प्रकार
का व्यवहार रखता है। उस बहिष्कृत परिवार को हैन्ड पम्प से पानी लेने, तालाब
में नहाने व निस्तार करने, सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने, पंगत में
साथबैठने की मनाही हो जाती है। यहाँ तक उसे गाँव में किराना दुकान में सामान
खरीदने, मजदूरी करने, नाई, शादी-ब्याह जैसे सामाजिक व सार्वजनिक कार्यक्रमों
में भी शामिल होने से वंचित कर दिया जाता है जिसके कारण वह परिवार गाँव में
अत्यंत अपमानजनक स्थिति में पहुँच जाता है तथा गाँव में रहना मुश्किल हो जाता
है। सामाजिक पंचायतें कभी-कभी सामाजिक बहिष्कार हटाने के लिए भारी जुर्माना,
अनाज, शारीरिक दंड व गाँव छोडऩे जैसे फरमान जारी कर देती है।
डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि सामाजिक बहिष्कार के कारण विभिन्न स्थानों से
आत्महत्या, हत्या, प्रताडऩा व पलायन की खबरें लगातार समाचार पत्रों में आती
रहती है। इस संबंध में अब तक कोई सक्षम कानून नहीं बन पाया है इसलिए ऐसे
मामलों में कोई उचित कार्यवाही कर नहीं हो पाती है न ही रोकथाम का कोई प्रयास
होता है। बहिष्कार के प्रभावितों को न्याय दिलाने समिति बहिष्कार से प्रभावित
नागरिक, सामाजिक कार्यकर्ता रविवार 25 सितम्बर को एकदिवसीय धरना देंगे तथा
ज्ञापन केन्द्र व राज्य शासन को भेजा जावेगा।

Thursday, September 15, 2016


मदर टेरेसा को संत की बजाय माँ कहलाना पसंद 
क्या महापुरूष बनने के लिए किसी व्यक्ति का अद्भुत चमत्कार प्रदर्शित करना आवश्यक है ? सेवाभावी व्यक्ति तो अपने कार्यों, समर्पित सेवाओं से ही आम लोगों के बीच लोकप्रिय होते हुए अमरत्व को प्राप्त कर जाती हैं। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मिशन के माध्यम से स्कूल, कॉलेजों, अस्पतालों की स्थापना कर जनता के हृदय में समाए हुए हैं। मोहनदास करमचंद गाँधी को देशसेवा, त्याग एवं गरीबों के प्रति संवेदना के कारण लोग महात्मा एवं साबरमती के संत कहते थे। वैसा ही मदर टेरेसा के साथ है। युगोस्लाविया में जन्मी एक सेवाभावी महिला मरीजों, दुखियों, अनाथों की नि:स्वार्थ सेवा करते हुए धीरे-धीरे दीन-दुखियों की ममतामयी माँ बन गई कि उन्हें लोग मदर टेरेसा के नाम से जानने लगे। स्वामी विवेकानंद, बापू एवं मदर टेरेसा के लिए जनता के हृदय में जो आदर व सम्मान है वह किसी एक करिश्मे या चमत्कार से संभव नहीं बल्कि इन महापुरूषों की बरसों की निस्वार्थ साधना ही थी जिससे इन्हें जनता ने सिर, आँखों पर बिठा रखा।
लेकिन धार्मिक परम्पराएँ कुछ अलग ही होती हैं, जैसे किसी व्यक्ति को संत का दर्जा देना हो तो ईसाई धर्म में आवश्यक है कि उस व्यक्ति से संबंधित अलौकिक चमत्कार की घटना का होना, जिससे उसे पवित्र आत्मा का दर्जा दिया जा सकता है और उसे संत घोषित करने की कार्यवाही आरंभ हो सकती है। मदर टेरेसा से संबंधित तथाकथित चमत्कार के मामले की कुछ जानकारी इस प्रकार है— बंगाल की एक आदिवासी महिला मोनिका बसेरा के संबंध में कहा गया कि मोनिका के पेट में ट्यूमर था जिसके कारण उसे काफी तकलीफ थी। सन् 1998 में जब मोनिका मदर टेरेसा की पुण्यतिथि पर चर्च में गई तब मदर की फोटो से एक प्रकाशपुँज निकला जो सिर्फ उसे ही दिखाई दिया तथा जिसके चमत्कार से इसका ट्यूमर ही ठीक हो गया तथा उसे दर्द से मुक्ति मिल गयी। इस करिश्मे की चर्चा देश-विदेश में फैल गई तथा वेटिकन सिटी के धर्माधिकारियों ने इस चमत्कार को मदर टेरेसा को संत का दर्जा देने के लिये पर्याप्त आधार मान लिया तथा प्रक्रिया आरंभ हो गई। इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब मोनिका बसेरा का इलाज कर रहे चिकित्सकों बलूरघाट जिला अस्पताल के डॉ. तरूण विश्वास एवं डॉ. रंजन मुस्तफी ने कहा मोनिका का ट्यूमर किसी करिश्मे से नहीं बल्कि उनके इलाज व चिकित्सा विज्ञान के चमत्कार से ठीक हुआ है। इसके बाद पं. बंगाल के तत्कालीन मंत्री पार्थ डे ने भी कहा मोनिका की बीमारी डॉक्टरी उपचार से ठीक हुई है। उसके बाद भारतीय चिकित्सा आयोग ने मोनिका के उपचार के दस्तावेजों के आधार पर वेटिकन चर्च के अधिकारियों से कहा मोनिका के उपचार व उसके ठीक होने का श्रेय चिकित्सा विज्ञान को है, किसी दैवीय चमत्कार को नहीं। लेकिन वेटिकन ने एकपक्षीय निर्णय लेते हुए चिकित्सा आयोग के दावे को सीधे खारिज कर दिया। इसके बाद कुछ समय तक चमत्कार के विपक्ष में दावे आते रहे। एक दिन मोनिका के पति सैकू ने सन् 2002 में पत्रकारों के समक्ष स्वीकार किया कि उसकी पत्नी की बीमारी मदर टेरेसा के फोटो के चमत्कार से नहीं बल्कि डॉक्टरी इलाज से ठीक हुई है। मदर टेरेसा से संबंधित चमत्कार की जो दूसरी घटना जो बतायी जा रही है वह ब्राजील की है, जहाँ के सैतुश नगर में एक मस्तिष्क ट्यूमर का मरीज सन् 2008 में मदर के चमत्कार से ठीक होना बताया गया। उस व्यक्ति का नाम, पता, इतिहास न पहले बताया गया और न बाद में बताया गया। चमत्कारिक उपचार के प्रचार की घटना लोगों को उत्सुकता का केन्द्र बनी हुई थी। मदर टेरेसा के परोपकारी स्वभाव के कारण वैसे लोग उन पर श्रद्धा रखते हैं। इस कारण उनके स्वयं के लिए तो महज संत की उपाधि का कोई महत्व नहीं था। वहीं मदर तो स्वयं किसी भगवान, संत बनकर उच्च आसन पर विराजने की बजाय दुखियों की सेवा-सुश्रुषा अपने हाथों से ही करने की ख्वाहिशमंद रही।
युगोस्लाविया के स्कपजे नगर में जन्मी मदर टेरेसा ने भारत को अपनी कर्मभूमि बनायी तथा बीमारों, अपाहिजों की सेवा से मानव सेवा को अपना लक्ष्य चुना। पीड़ा से कराहते मरीजों के चेहरे पर मुस्कान लाने, विकलांग, बेसहारा, वृद्धों, अनाथ बच्चों को दवा, सहारा, उपचार, आश्रय प्रदान करते हुए उन्होंने लोगों के दिलों में सहजता से अपना स्थान बना लिया था। मरीज, बच्चे, वृद्ध उनमें ममतामयी माँ की झलक पाते थे। मदर टेरेसा ने सेवा को अपना माध्यम बनाया न कि चमत्कार को। यही कारण है मदर को नोबेल पुरस्कार, भारत रत्न सहित दुनियाभर के विभिन्न पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए।
मदर टेरेसा के कार्यों को यदि चमत्कार कहा जावे तो उनका करिश्मा चमत्कार से ट्यूमर ठीक करने में नहीं बल्कि उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति व मेहनत का ही चमत्कार था कि उन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटीज की स्थापना कर उससे सौ से अधिक स्कूल, साढ़े तीन सौ से अधिक मोबाइल डिस्पेन्सरीज़, 30 परिवार नियोजन केन्द्र, देश भर में 65 प्रतिष्ठान व विदेशों में 35 प्रतिष्ठान संचालित किये जो अभी भी कार्यरते हैं। चाहे बंगलादेश के शरणार्थियों को राहत पहुँचाने का कार्य हो, या कलकत्ते के कुष्ठ रोगियों की सेवा, अनाथ बच्चों के लिये आश्रम, मरणासन्न व्यक्तियों को अंतिम क्षणों में शांतिपूर्वक समय बिताने के लिए मुमुर्ष आश्रय हो, मदर ने हर कठिन लगने वाले कार्य को सरलता से कर दिखाया। चमत्कारों के रूप में प्रसारित होने वाली घटनाएँ न केवल अंधविश्वास बढ़ाने का कारण बनती है, बल्कि भोली-भाली जनता को भ्रम में डालती है। जबकि हर महापुरुष चाहे वे स्वामी विवेकानंद जी हो या बापू हो या फिर मदर टेरेसा, जनता को चमत्कारों पर भरोसा करने की बजाय मेहनत करने की ही प्रेरणा देते रहे हैं।