अंधविश्वास,डायन (टोनही) प्रताड़ना एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनजागरण

I have been working for the awareness against existing social evils,black magic and witchcraft that is prevalent all across the country and specially Chhattisgarh. I have been trying to devote myself into the development of scientific temperament among the mass since 1995. Through this blog I aim to educate and update the masses on the awful incidents & crime taking place in the name of witch craft & black magic all over the state.

Wednesday, January 31, 2018

चंद्रग्रहण खगोलीय घटना : अंधविश्वास में न पड़ें—डॉ. दिनेश मिश्र
दुर्लभ खगोलीय घटना के साक्षी बनें
अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा चंद्रग्रहण एक खगोलीय घटना है। डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा प्रारंभ में यह माना जा रहा था कि चंद्रग्रहण राहू-केतू के चंद्रमा को निगलने से होता है, जिससे धीरे-धीरे विभिन्न अंधविश्वास व मान्यताएँ जुड़ती चली गईं, लेकिन बाद में विज्ञान ने यह सिद्ध किया कि चंद्रग्रहण पृथ्वी की छाया के कारण होता है। जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है तब उसका एक किनारा जिस पर छाया पडऩे लगती है काला होना शुरू हो जाता है जिसे स्पर्श कहते हैं। जब पूरा चंद्रमा छाया में आ जाता है तब पूर्णग्रहण हो जाता है। जब चंद्रमा का पहला किनारा दूसरी ओर छाया से बाहर निकलना शुरू होता है तो ग्रहण छूटना शुरू हो जाता है। जब पूरा चंद्रमा पृथ्वी की छाया से बाहर आ जाता है तो ग्रहण समाप्त हो जाता है जिसे ग्रहण का मोक्ष कहते हैं। चंद्रग्रहण का कहीं कोई दुष्प्रभाव नहीं है, इसे लेकर तरह-तरह के भ्रम व अंधविश्वास हैं। लेकिन लोगों को इन अंधविश्वासों में नहीं पडऩा चाहिए तथा ग्रहण को सुरक्षित ढंग से देखा जा सकता है तथा वैज्ञानिक इसका अध्ययन भी करते हैं।
भारत के महान खगोलविद् आर्यभट्ट ने आज से करीब 1500 वर्ष पहले 499 ईस्वी में यह सिद्ध कर दिया था कि चन्द्रग्रहण सिर्फ एक खगोलीय घटना है जो कि चन्द्रमा पर पृथ्वी की छाया पडऩे से होती है। उन्होंने अपने ग्रंथ आर्यभट्टीय के गोलाध्याय में इस बात का वर्णन किया है। इसके बाद भी चन्द्रग्रहण की प्रक्रिया को लेकर विभिन्न भ्रम एवं अंधविश्वास कायम है।
डॉ. मिश्र ने कहा 31 जनवरी को इस वर्ष का प्रथम चंद्रग्रहण होने वाला है।  31 जनवरी को चंद्रग्रहण के समय हम ऐसी दुर्लभ खगोलीय घटना के साक्षी बनने वाले हैं जो आज से करीब 150 वर्ष पूर्व 1866 में घटित हुई थी। इस चंद्रग्रहण में चंद्रमा की 3 विशेष अवस्थाएँ दर्शनीय रहेंगी— 1. सुपर मून या वृहद चंद्रमा अर्थात् चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक होने से सामान्य से 14 प्रतिशत बड़ा और 30 प्रतिशत अधिक चमकीला दिखाई देगा, 2. ब्लू मून, जब माह में दो बार पूर्ण चंद्रमा दिखाई देता है तो उसे ब्लू मून कहा जाता है तथा 3. ब्लड मून या कॉपर मून, जब पूर्ण चंद्रग्रहण होता है तो पृथ्वी पूरी तरह से सूर्य और चंद्रमा के बीच में आ जायेगी तब पूर्ण चंद्रग्रहण होगा। इसमें ब्लू अथवा नीला प्रकाश पूरी तरह से फिल्टर हो जाता है तथा आरेंज या रेड लाईट बच जाती है जिसके कारण यह ब्लड अथवा कॉपर मून कहलाता है। चंद्रग्रहण 3 घंटे 52 मिनट का होगा जो शाम को 5:46 से शुरू होने वाला ग्रहण 9:38 तक रहेगा। यह एक अनोखी खगोलीय घटना है। सभी नागरिकों को इसे बिना किसी डर या संशय के देखना चाहिए। चंद्रग्रहण देखना पूर्णत: सुरक्षित है।
डॉ. मिश्र ने कहा जब चंद्रग्रहण होने वाला होता है तब विभिन्न भविष्यवाणियाँ सामने आने लगती हैं जिससे आम लोग संशय में पड़ जाते हैं जबकि चंद्रग्रहण में खाने-पीने, बाहर निकलने की बंदिशों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। ग्रहण से खाद्य वस्तुएँ अशुद्ध नहीं होती तथा उनका सेवन करना उतना ही सुरक्षित है जितना किसी सामान्य दिन या रात में भोजन करना। इस धारणा का भी कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि गर्भवती महिला के गर्भ में पल रहे शिशु के लिए चंद्रग्रहण हानिकारक होता है तथा ग्रहण की वजह से स्नान करना कोई जरूरी नहीं है अर्थात् इस प्रकार की आवश्यकता का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है तथा ग्रहण का अलग-अलग व्यक्तियों पर भिन्न प्रभाव पडऩे की मान्यता भी काल्पनिक है। यह सब बातें केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी पुस्तिका में भी दर्शायी गयी है।
डॉ. दिनेश मिश्र
नेत्र विशेषज्ञ
अध्यक्ष, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति
नयापारा, फूल चौक, रायपुर (छत्तीसगढ़)