अंधविश्वास,डायन (टोनही) प्रताड़ना एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनजागरण

I have been working for the awareness against existing social evils,black magic and witchcraft that is prevalent all across the country and specially Chhattisgarh. I have been trying to devote myself into the development of scientific temperament among the mass since 1995. Through this blog I aim to educate and update the masses on the awful incidents & crime taking place in the name of witch craft & black magic all over the state.

Sunday, July 22, 2012


हरेली का मिथक एंव यथार्थ

याली,सावन के महीने में जब बरसात हो रही है,चारों ओर हरियाली बिखरी हुई हो,वैसा नजारा तो छत्तीसगढ़ जैसे कृषि प्रधान प्रदेश के लिये अत्यन्त महत्व का है।गर्मी के बाद बरसात की बौछारों वे खुशनुमा हरियाली का स्वागत करने को सब आतुर रहते हैं।सावन में हरेली में ही जहां किसान खेती की प्रारंभिक प्रक्रियाएं पूरी कर फसल के लिये स्वयं को तैयार करते है,अपने खेतों,गाय-बैलों,औजारों की पूजा करते है व हरियाली का उत्सव मनाते हैं।वहीं अमावस्या की रात मन ही मन आशंकित रहते है,जबकि वर्ष में साल भर अमावस्या हर पखवाड़े में आती है,चन्द्रमा के न दिखने के कारण रात अंधेरी होती है तथा बारिश के कारण,हवाओं,बादलों के गरजने के कारण यह अंधेरा रहस्यमय बन जाता है जबकि इसमें रहस्य व डर जैसी कोई बात नहीं है।

   आज भी ग्रामीण अंचल में हरेली अमावस्या की रात के नाम से अनजाना सा भय छाने लगता है, किसी अनिष्ठ की आशंका बच्चों, बड़ों को, पशुओं को नुकसान पहुंचने का डर, गांव बिगड़ने का ख्याल ग्रामीणों को बैगा के द्वार पर जाने को मजबूर कर देता है तथा सहमें ग्रामीण न केवल गांव बांधने की तैयारियां करते हैं,अनुष्ठान पूर्वक गांव के चारों कोनों को कथित तंत्र-मंत्र से बांधते है,गांवों में लोग शाम ढलते ही दरवाजे बंद कर लेते हैं।बैगा के निर्देशानुसार किसी भी व्यक्ति के गांव से बाहर आने-जाने की मनाही कर दी जाती है।कथित भूत-प्रेत,विनाशकारी जादू-टोने से बचाने के लिये नीम की डंगलियां घरों-घर खोंस ली जाती है।घरों के बाहर गोबर से आकृति बनायी जाती है।कही सुनी बातों,किस्से कहानियों के आधार पर पले-बढ़े भ्रम व अंधविश्वासों के आधार पर माहौल इतना रहस्यमय बन जाता है कि यदि हरेली की रात कोई आवश्यकता पड़ने पर घर का दरवाजा भी खटखटायें तो लोग दरवाजा खोलने को तैयार नहीं होते।जादू-टोने के आरोप में महिला प्रताड़ना की घटनाएं भी घट जाती है।
  पिछले अठारह वर्षो से अंचल के ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वासों एवं जादू-टोने के संदेह में होने वाली महिला प्रताड़ना, टोनही प्रताड़ना के खिलाफ अभियान चलाने के लिये हम गांवों में सभाएं लेते हैं व जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हैं।जिन स्थानों पर महिला प्रताड़ना की घटनाएं होती है वहां जाकर उन महिलाओं व उनके परिजनों से भी मिलते है।उन्हें सांत्वना देते हैं,उनसे चर्चा करते हैं व आवश्यकतानुसार उनके उपचार का भी प्रबंध करते हैं।बारह सौ से अधिक गांवों में सभाएं लेने के दौरान अनेक प्रताड़ित महिलाओं से चर्चा हुई,उनके दुख सुने कि कैसे अनेक बरसों से उस गांव में सबके साथ रहने व सुख दुख में भागीदार बनकर जिंदगी गुजारने के बाद कैसे वे कुछ संदेहों व बैगाओं के कारण पूरे गांव के लिये मनहूस घोषित कर दी गई।उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया गया,सरेआम बेईज्जती की गई।जब उन्होंने चिल्लाकर अपने बेगुनाह होने की दुहाई दी तब भी उनकी बात नहीं सुनी गई,उन्हें सजा दे दी गई।न ही उन्हें बचाने कोई आगे आया व न ही किसी ने उन्हें सांत्वना दी।शरीर व मन के जख्मों को लिये वे कहा-कहां नहीं भटकती रही।किसी-किसी गांवों में महिलाओं ने बताया उनके सामने जीवन यापन की मजबूरी उठ खड़ी हुई तथा अपने गांव व आस पास के गांवों में मजदूरी न मिलने के कारण भीख मांगकर काम चलाना पड़ा।टोनही के आरोप में प्रताड़ित होने वाली अधिकांश महिलाएं गरीब,असहाय,विधवा व परित्यक्ता होती है।जिन पर आरोप लगाना बैगा व उसके बहकावे में आये ग्रामीणों के लिये आसान होता है।टोनही प्रताड़ना के खिलाफ अभियान चलाते समय इन महिलाओं से जब बातचीत का अवसर मिलता हे तब अपनी कहानी बताते हुए उनकी आंखे डबडबा जाती है,गला भर जाता है,आवाज रूंध जाती है उनके आंसू उनकी निर्दोषिता बयान कर देते है।
   दुर्ग जिले के खुड़मुड़ी के नजदीक एक गांव में जब हम हरेली की रात पहुंचे तब कुछ ग्रामीणों ने कहा हरेली की रात टोनही सुनसान स्थान, श्मशान में मंत्र साधना करती है व शक्ति प्राप्त करने के लिये निर्वस्त्र होकर पूजा अनुष्ठान करती है,लाश जगाती है,उसके मंत्र से चांवल बाण जैसे घातक बन जाते है।ऐसी बात और भी अनेक गांवों में ग्रामीणों ने कही। तब हमने उनसे कहा कि हम रात में ही श्मशान घाट जाने को तैयार है तथा पिछले वर्षो में खुड़मुड़ी,घुसेरा,बीरगांव, मंदिर हसौद,रायपुरा सहित अनेक गांवों के श्मशान भी गये, हमारे साथ ग्रामीण भी गये, निर्जन स्थानों तालाबों के किनारे, जंगलों में गये पर सारी बातें असत्य सिद्ध हुई।न ही कहीं कोई अनुष्ठान करती महिला न ही कोई अन्य डरावनी बात।अलबत्ता खराब मौसम, तेज बारिश, तेज हवाएं, बादलों से जरूर सामना हुआ।
   उरकुरा के पास एक गांव में जब हम रात में सभा कर रहे थे तब कुछ ग्रामीणों ने कहा हमने टोनही के संबंध में पुराने लोगों से सुना जरूर है पर देखा नहीं है।जब हमने वहां एक करीब अस्सी वर्ष के वृद्ध से बात की तब उसने भी स्वयं देखने से इंकार किया।ग्रामीणों ने बैगाओं के तंत्र-मंत्र के जानकार होने व झाड़ फूंक करने वाले बैगाओं ने तंत्र-मंत्र के जानकार होने का दावा भी किया पर कभी किसी महिला ने यह नहीं कहा कि वह कोई तंत्र मंत्र जानती है,वह जादू के छोटे से खेल भी नहीं दिखा पाती।मात्र अफवाहों व गलत सूचनाओं के आधार पर किसी महिला पर जादू टोने का संदेह करना व प्रताड़ित करने की घटनाएं घटती है।
  हरेली के संबंध में बहुत से मिथक व किस्से कहानियां हमें गांवों से सुनने को मिलती है जिसका कारण अंचल में शिक्षा व स्वास्य चेतना का अपेक्षित प्रचार-प्रसार न होना ही है जिसके कारण आज भी मनुष्य व पशुओं को होने वाली शारीरिक व मानसिक बीमारियों को जादू-टोने के कारण होना माना गया व तंत्र मंत्र व झाड़ फूंक से ही इनका निदान मानकर बैगाओं के पास जाने का विकल्प अपनाना पड़ा।गांवों में बैगा-गुनियां भी बीमारियों की झाड़-फूंक करके ठीक करने का प्रयास करते, पर बीमार व्यक्ति के ठीक न हो पाने पर सारा दोष किसी निर्दोष महिला की तंत्र-मंत्र शक्ति, जादू पर डाल देते हैं।किसी महिला को दोषी ठहरा कर उसे बीमारी को दूर करने को कहा जाता है तथा उस महिला के आरोपों से इंकार करने व इलाज करने में असमर्थता बताने पर उसे तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है,पहले गांवों में विद्युत व्यवस्था व चिकित्सा सुविधा भी बिल्कुल नहीं थी।इसलिये ऐसी धारणाएं बढ़ती चली गई।
   कथित जादू टोने की शक्तियों से आज भी ग्रामीण अंचल में खौफ बरकरार रहता है।ग्राम जुनवानी में कुछ वर्षो पहले टोनही प्रताड़ना की एक घटना हुई थी,जिसमें बैगा के कहने पर एक महिला को घर से घसीट कर बाहर लाया गया, सार्वजनिक चौक पर उसे सरेआम पीटा गया।मैला खिलाया गया व उसे जान से मारने की कोशिश की गई।सुबह जानकारी मिलने पर हम वहां गये तथा ग्रामीणों व पंचों से चर्चा की। हमने उन्हें समझाईश देते हुए कहा यदि उस महिला में कोई चमत्कारिक शक्ति होती,जादू-टोने की ताकत होती,किसी को भी मार सकती तो क्या वह चुपचाप आप सबसे मार खा लेती उसकी सार्वजनिक बेईज्जती करना आसान होता।वह अपनी ताकत से अपने उपर पड़ने वाले प्रहारों को रोक क्यों नहीं लेती,जिसके पास ताकत होगी व न केवल अपना बचाव कर सकता है बल्कि मारपीट का प्रत्युत्तर भी दे सकता है,पर यहां कुछ ऐसा नहीं हुआ।बेचारी महिला कुछ नहीं कर पायी एवं अंधविश्वास में पड़कर अकेली औरत को गांव में मारा पीटा गया है जो बिलकुल गलत है।एक निर्दोष महिला के साथ ऐसा सलूक करना शर्मनाक है।हमारी बात सुनकर वहां सन्नाटा छा गया।भीड़ में मौजूद लोगों ने भी माना उनसे गलती हो गई है तथा हमारे कहने पर वे उस महिला को पुनः वहां रखने को तैयार हो गये।हम उस प्रताड़ित महिला से मिले,उसे व उसके परिवार को सांत्वना दी,उसके इलाज के लिये इंतजाम किया।
   हम हरेली व अन्य अवसरों पर आयोजित सभाओं में बताते हैं कि सावन में, बरसात में, मौसम में नमी व उसमें के चलते तापमान में अनियमितता आती है जिसके कारण बीमारियां फैलाने वाले कीटाणु,बैक्टीरिया,वायरस तेजी से पनपने लगते हैं व संक्रमण तेजी से फैलता है।गांवों में गंदगी गड्ढों में रूका हुआ पानी,नम वातावरण,संक्रमित पानी व दूषित भोजन बीमारी बढ़ाने में सहायक होता है।नीम की डंगाल तोड़ तोड़कर घर के सामने,गाड़ियों के सामने लगाने की बजाय नीम के पौधे लगाने की आवश्यकता अधिक है।मच्छर व मक्खियां बीमारियां फैलाने के प्रमुख कारक है।बीमारियों व उनके जिम्मेदार कारकों पर नियंत्रण के लिये तंत्र मंत्र गांव बांधने की जरूरत नहीं है बल्कि साफ सफाई से रहने,उबला हुआ पानी पीने, स्वच्छता व स्वास्थ्य के सरल नियमों का पालन करने की जरूरत है।मक्खियों व मच्छरों से अधिक खतरनाक कोई तंत्र-मंत्र नहीं हो सकता।

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