मदर टेरेसा को संत की बजाय माँ कहलाना पसंद
क्या
महापुरूष बनने के लिए किसी व्यक्ति का अद्भुत चमत्कार प्रदर्शित करना
आवश्यक है ? सेवाभावी व्यक्ति तो अपने कार्यों, समर्पित सेवाओं से ही आम
लोगों के बीच लोकप्रिय होते हुए अमरत्व को प्राप्त कर जाती हैं। स्वामी
विवेकानंद रामकृष्ण मिशन के माध्यम से स्कूल, कॉलेजों, अस्पतालों की
स्थापना कर जनता के हृदय में समाए हुए हैं। मोहनदास करमचंद गाँधी को
देशसेवा, त्याग एवं गरीबों के प्रति संवेदना के कारण लोग महात्मा एवं
साबरमती के संत कहते थे। वैसा ही मदर टेरेसा के साथ है। युगोस्लाविया में
जन्मी एक सेवाभावी महिला मरीजों, दुखियों, अनाथों की नि:स्वार्थ सेवा करते
हुए धीरे-धीरे दीन-दुखियों की ममतामयी माँ बन गई कि उन्हें लोग मदर टेरेसा
के नाम से जानने लगे। स्वामी विवेकानंद, बापू एवं मदर टेरेसा के लिए जनता
के हृदय में जो आदर व सम्मान है वह किसी एक करिश्मे या चमत्कार से संभव
नहीं बल्कि इन महापुरूषों की बरसों की निस्वार्थ साधना ही थी जिससे इन्हें
जनता ने सिर, आँखों पर बिठा रखा।
लेकिन
धार्मिक परम्पराएँ कुछ अलग ही होती हैं, जैसे किसी व्यक्ति को संत का
दर्जा देना हो तो ईसाई धर्म में आवश्यक है कि उस व्यक्ति से संबंधित अलौकिक
चमत्कार की घटना का होना, जिससे उसे पवित्र आत्मा का दर्जा दिया जा सकता
है और उसे संत घोषित करने की कार्यवाही आरंभ हो सकती है। मदर टेरेसा से
संबंधित तथाकथित चमत्कार के मामले की कुछ जानकारी इस प्रकार है— बंगाल की
एक आदिवासी महिला मोनिका बसेरा के संबंध में कहा गया कि मोनिका के पेट में
ट्यूमर था जिसके कारण उसे काफी तकलीफ थी। सन् 1998 में जब मोनिका मदर
टेरेसा की पुण्यतिथि पर चर्च में गई तब मदर की फोटो से एक प्रकाशपुँज निकला
जो सिर्फ उसे ही दिखाई दिया तथा जिसके चमत्कार से इसका ट्यूमर ही ठीक हो
गया तथा उसे दर्द से मुक्ति मिल गयी। इस करिश्मे की चर्चा देश-विदेश में
फैल गई तथा वेटिकन सिटी के धर्माधिकारियों ने इस चमत्कार को मदर टेरेसा को
संत का दर्जा देने के लिये पर्याप्त आधार मान लिया तथा प्रक्रिया आरंभ हो
गई। इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब मोनिका बसेरा का इलाज कर रहे
चिकित्सकों बलूरघाट जिला अस्पताल के डॉ. तरूण विश्वास एवं डॉ. रंजन मुस्तफी
ने कहा मोनिका का ट्यूमर किसी करिश्मे से नहीं बल्कि उनके इलाज व चिकित्सा
विज्ञान के चमत्कार से ठीक हुआ है। इसके बाद पं. बंगाल के तत्कालीन मंत्री
पार्थ डे ने भी कहा मोनिका की बीमारी डॉक्टरी उपचार से ठीक हुई है। उसके
बाद भारतीय चिकित्सा आयोग ने मोनिका के उपचार के दस्तावेजों के आधार पर
वेटिकन चर्च के अधिकारियों से कहा मोनिका के उपचार व उसके ठीक होने का
श्रेय चिकित्सा विज्ञान को है, किसी दैवीय चमत्कार को नहीं। लेकिन वेटिकन
ने एकपक्षीय निर्णय लेते हुए चिकित्सा आयोग के दावे को सीधे खारिज कर दिया।
इसके बाद कुछ समय तक चमत्कार के विपक्ष में दावे आते रहे। एक दिन मोनिका
के पति सैकू ने सन् 2002 में पत्रकारों के समक्ष स्वीकार किया कि उसकी
पत्नी की बीमारी मदर टेरेसा के फोटो के चमत्कार से नहीं बल्कि डॉक्टरी इलाज
से ठीक हुई है। मदर टेरेसा से संबंधित चमत्कार की जो दूसरी घटना जो बतायी
जा रही है वह ब्राजील की है, जहाँ के सैतुश नगर में एक मस्तिष्क ट्यूमर का
मरीज सन् 2008 में मदर के चमत्कार से ठीक होना बताया गया। उस व्यक्ति का
नाम, पता, इतिहास न पहले बताया गया और न बाद में बताया गया। चमत्कारिक
उपचार के प्रचार की घटना लोगों को उत्सुकता का केन्द्र बनी हुई थी। मदर
टेरेसा के परोपकारी स्वभाव के कारण वैसे लोग उन पर श्रद्धा रखते हैं। इस
कारण उनके स्वयं के लिए तो महज संत की उपाधि का कोई महत्व नहीं था। वहीं
मदर तो स्वयं किसी भगवान, संत बनकर उच्च आसन पर विराजने की बजाय दुखियों की
सेवा-सुश्रुषा अपने हाथों से ही करने की ख्वाहिशमंद रही।
युगोस्लाविया
के स्कपजे नगर में जन्मी मदर टेरेसा ने भारत को अपनी कर्मभूमि बनायी तथा
बीमारों, अपाहिजों की सेवा से मानव सेवा को अपना लक्ष्य चुना। पीड़ा से
कराहते मरीजों के चेहरे पर मुस्कान लाने, विकलांग, बेसहारा, वृद्धों, अनाथ
बच्चों को दवा, सहारा, उपचार, आश्रय प्रदान करते हुए उन्होंने लोगों के
दिलों में सहजता से अपना स्थान बना लिया था। मरीज, बच्चे, वृद्ध उनमें
ममतामयी माँ की झलक पाते थे। मदर टेरेसा ने सेवा को अपना माध्यम बनाया न कि
चमत्कार को। यही कारण है मदर को नोबेल पुरस्कार, भारत रत्न सहित दुनियाभर
के विभिन्न पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए।
मदर
टेरेसा के कार्यों को यदि चमत्कार कहा जावे तो उनका करिश्मा चमत्कार से
ट्यूमर ठीक करने में नहीं बल्कि उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति व मेहनत का ही
चमत्कार था कि उन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटीज की स्थापना कर उससे सौ से अधिक
स्कूल, साढ़े तीन सौ से अधिक मोबाइल डिस्पेन्सरीज़, 30 परिवार नियोजन
केन्द्र, देश भर में 65 प्रतिष्ठान व विदेशों में 35 प्रतिष्ठान संचालित
किये जो अभी भी कार्यरते हैं। चाहे बंगलादेश के शरणार्थियों को राहत
पहुँचाने का कार्य हो, या कलकत्ते के कुष्ठ रोगियों की सेवा, अनाथ बच्चों
के लिये आश्रम, मरणासन्न व्यक्तियों को अंतिम क्षणों में शांतिपूर्वक समय
बिताने के लिए मुमुर्ष आश्रय हो, मदर ने हर कठिन लगने वाले कार्य को सरलता
से कर दिखाया। चमत्कारों के रूप में प्रसारित होने वाली घटनाएँ न केवल
अंधविश्वास बढ़ाने का कारण बनती है, बल्कि भोली-भाली जनता को भ्रम में
डालती है। जबकि हर महापुरुष चाहे वे स्वामी विवेकानंद जी हो या बापू हो या
फिर मदर टेरेसा, जनता को चमत्कारों पर भरोसा करने की बजाय मेहनत करने की ही
प्रेरणा देते रहे हैं।
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