बाल विवाह जैसीसामाजिक कुरीति के उन्मूलन के लिए जन जागरण जरुरी-.डॉ .दिनेश
मिश्र -छत्तीसगढ़ में बाल विवाह के सन्दर्भ में भारत के जनगणना महापंजीयक
के द्वारा पिछले वर्ष जारी एक रिपोर्ट में जानकारी मिली है कि छत्तीसगढ़ में
दोलाख,तीन हजार पाँच सौ सैतीस (2,03537)बाल वधुएँ है जिसमें से बाइस हजार
सात सौ अट्ठाइस की उम्र 14 वर्ष से कम है जनगणना के 2011 के आंकड़ों के
विश्लेषण के आधार पर जरी की गयी इस रिपोर्ट में जानकारी दी गयी है की 10 से
19 वर्ष की उम्र की बाल वधुओ की संख्या ग्रामीण अंचल
में एक लाख साठ हजार चार सौ चौतीस(1,60,433) निकली ,वहीं शहरी क्षेत्रों
में यह संख्या 37,094 थी ,बाल वधुओ के इन चौकाने वाले आंकड़ों को
मद्देनजररखते हुए बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीति के उन्मूलन के लिए समाज
के सभी वर्गों का सहयोग आवश्यक है . शिक्षा का प्रचार प्रसार न होने
जागरूकता की कमी ,पुरानी परम्पराओ को पालन करने के नाम पर होने वाले बाल
विवाहों को रोकना सभी जागरूक नागरिकों का कर्त्तव्य है ,अक्षय तृतीया के
मौके पर अधिकाधिक संख्या में बल विवाह संपन्न होते है जिनमे कई बार तो वर
वधु बने बच्चे अंगूठा चूसते हुए माँ की गोद में बैठे रहते है तो अनेक
मामलों में दस ग्यारह वर्ष की उम्र में ही शादी कर जाती है इस आयु में
बच्चे न तो शारीरिक तथा मानसिक रूप से विवाह जैसी गंभीर जिम्मेदारी निभाने
के लायक होते है .बाल विवाह से बालिकाओ की पढाई लिखाई बंद हो जाती है बल्कि
उन्हें कम उम्र से ही मातृत्व का बोझ उठाना पड़ता है जिसके लिए वे शारीरिक
व मानसिक रूप से तैयार नहीं होती .बाल विवाह की प्रथा न ही धार्मिक रूप से
सही है और न ही सामाजिक रूप से .पुरातन भारतीय व्यवस्था में भी व्यक्ति के
शिक्षा पूर्ण करने के बाद युवावस्था में ही विवाह कर गृहस्थ आश्रम में
प्रवेश को उचित बताया गया है किसी भी धर्मं ने नन्हे बच्चों की शादी को
उचित नहीं ठहराया है बल्कि अल्पव्यस्क बालिकाओ की मृत्यु भी प्रसूति के समय
हो जाती है , डॉ. दिनेश मिश्र अध्यक्ष अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति
Sunday, May 8, 2016
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