अंधविश्वास,डायन (टोनही) प्रताड़ना एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनजागरण

I have been working for the awareness against existing social evils,black magic and witchcraft that is prevalent all across the country and specially Chhattisgarh. I have been trying to devote myself into the development of scientific temperament among the mass since 1995. Through this blog I aim to educate and update the masses on the awful incidents & crime taking place in the name of witch craft & black magic all over the state.

Thursday, April 9, 2020



# अंधविश्वास के कारण हुई हत्याओं की   घटना .डॉ.दिनेश मिश्र 
# ग्रामीण अंधविश्वास में न पड़ें 
@ छत्तीसगढ़ के  सीतापुर थाना क्षेत्र के ग्राम देवगढ़ सरनापारा में  अंधविश्वास के कारण 4 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई है। इस घटना को ईश्वर राम पैंकरा नामक एक 25 वर्षीय युवक ने अंजाम दिया है। इस बड़ी वारदात के बाद पूरे इलाके में दहशत का माहौल बना हुआ है। डॉ दिनेश मिश्र ने कहा इस संबंध में मिली जानकारी के मुताबिक देवगढ़ सरनापारा गाँव में रात बारह बजे कथित रुप से तंत्र मंत्र पूजा के बाद एक युवक ने रात कऱीब बारह बजे से डेढ़ बजे तक अपनी माँ समेत चार लोगों की हत्या कर दी ,इस युवक ने  लगभग एक दर्जन मुर्गे और तीन बैलों को भीनिर्ममता पूर्वक मार दिया।* बताया जाता है कि * आरोपी तन्त्र मंत्र पर विश्वास करता है तथा कथित रूप से सिद्धि प्राप्त करने के लिए इतने निर्दोष प्राणियों की बलि दे दी,आरोपी रात बारह बजे अपने घर पर तंत्र पूजा कर रहा था,जहां उसने तीन जगहों पर मुर्गे की बलि दिया कथित पूजा स्थल पर पूजा की सामग्री, फूल, गुलाल बरामद हुआ है, उस युवक ने  बंदन गुलाल भी उड़ाया और फिर 55 वर्षीया माँ राजकुंवर पैकरा, 70 वर्षीया मनबसिया पैकरा, 70 वर्षीय जबरसाय और 50 वर्षीय मोहनराम की हत्या कर दी।* अपनी माँ के अलावा आरोपी ने जिन्हें मारा वे पड़ोसी थे। इतनी बड़ी वारदात से पूरा गांव हिल गया जानकारी होने पर ग्रामीणों ने जैसे तैसे युवक को काबू में लिया और पुलिस को सूचना दी।  *युवक को गिरफ्तार कर लिया गया है,  पूरे गांव में दहशत  व्याप्त है।
डॉ. मिश्र ने कहा पूर्व में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसमें अंधविश्वास ,एवं तांत्रिक सिद्दी प्राप्त करने के चक्कर में बलि दे दी गयी,देवगढ़ में हुई यह घटना अत्यंत निंदनीय एवं चिंताजनक है ,ग्रामीणों को किसी भी अंधविश्वास एवं भ्रम में पड़ कर कानून अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए एवं अपनी समस्याओं के विज्ञान सम्मत निराकरण के लिए प्रयास करना चाहिए.   समिति देवगढ़ जाकर ग्रामीणों से चर्चा करेगी एवं समझाइश देगी .
डॉ दिनेश मिश्र अध्यक्ष अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति



 सामाजिक अंधविश्वास एवं कुरीतियों का निर्मूलन आवश्यक-डॉ. दिनेश मिश्र
@ रायगढ़ में जनजागरण
    # अंधविश्वास निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा — अशिक्षा, गरीबी, चिकित्सा सुविधाओं की अनुपलब्धता तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव में लोग तरह-तरह के अंधविश्वासों के फेर में पड़ जाते हैं, वहीं कई बार शिक्षित लोग भी चमत्कारिक सफलता प्राप्त करने के लिए चमत्कार की धारणा व कथित रूप से अद्भूत शक्ति के दावों व भ्रामक विज्ञापनों पर यकीन कर लेते हैं, जिस कारण उन्हें बाद में शारीरिक व आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।  

रायगढ़ में  पशुबलि के विरोध में कार्य कर रहे गायत्री परिवार के पदाधिकारी संजय गौतम ,सामाजिक कार्यकर्ता अमित पटेल,संदीप अग्रवाल, सहित अनेक कार्यकर्ताओ, से चर्चा हुई तथा रायगढ़ में आगे भी कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय हुआ 
    जनजागरण अभियान में डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा — देश में जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, झाड़-फूँक ,बलि प्रथा,की मान्यताओं एवं डायन टोनही के संदेह में प्रताडऩा तथा सामाजिक बहिष्कार के मामलों की भरमार है। टोनही/डायन प्रताडऩा के मामलों में अंधविश्वास व सुनी-सुनाई बातों के आधार पर किसी निर्दोष महिला को टोनही/डायन घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू-टोना कर बच्चों को बीमार करने, फसल खराब होने, व्यापार-धंधे में नुकसान होने के कथित आरोप लगाकर उसे तरह-तरह की शारीरिक व मानसिक प्रताडऩा दी जाती है। कई मामलों में आरोपी महिला को गाँव से बाहर निकाल दिया जाता है। बदनामी व शारीरिक प्रताडऩा के चलते कई बार पूरा पीडि़त परिवार स्वयं गाँव से पलायन कर देता है। कुछ मामलों में महिलाओं की हत्याएँ भी हुई है अथवा वे स्वयं आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती है। जबकि जादू-टोना के नाम पर किसी भी व्यक्ति को प्रताडि़त करना गलत तथा अमानवीय है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति के पास ऐसी जादुई शक्ति नहीं होती कि वह दूसरे व्यक्ति को जादू से बीमार कर सके या किसी भी प्रकार का आर्थिक नुकसान पहुँचा सके। जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, टोनही, नरबलि के मामले सब अंधविश्वास के ही उदाहरण हैं। विदर्भ, छत्तीसगढ़, ओडीसा, झारखण्ड, बिहार, आसाम सहित अनेक प्रदेशों में प्रतिवर्ष टोनही/डायन के संदेह में निर्दोष महिलाओं की हत्याएँ हो रही है जो सभ्य समाज के लिये शर्मनाक है। नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो ने सन् 2001 से 2018तक 3000 से अधिक  महिलाओं की मृत्यु डायन प्रताडऩा के कारण होना माना है। जबकि अधिकतर मामलों में पुलिस रिपोर्ट ही नहीं हो पातीं। छत्तीसगढ़ में 1357 मामलों में 240 मामलों में टोनही/डायन के संदेह में हत्या की घटना की प्रमाणिक जानकारी है।
    डॉ. मिश्र ने कहा आम लोग चमत्कार की खबरों के प्रभाव में आ जाते हैं। हम चमत्कार के रूप में प्रचारित होने वाले अनेक मामलों का परीक्षण व उस स्थल पर जाँच भी समय-समय पर करते रहे हैं। चमत्कारों के रूप में प्रचारित की जाने वाली घटनाएँ या तो सरल वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के कारण होती है तथा कुछ में हाथ की सफाई, चतुराई होती है जिनके संबंध में आम आदमी को मालूम नहीं होता। कई स्थानों पर स्वार्थी तत्वों द्वारा साधुओं को वेश धारण चमत्कारिक घटनाएँ दिखाकर ठगी करने के मामलों में वैज्ञानिक प्रयोग व हाथ की सफाई के ही करिश्में थे। ऐसे प्रयोगों को गाँवों में लोगों के सामने प्रदर्शित करके उनके वास्तविक कारणों की जानकारी भी सभाओं व शिविरों में दी जाती है ताकि लोग चमत्कारों के भ्रम में आकर ठगी के शिकार न बनें। समाज में फैले अंधविश्वास, पाखंड, कुरीतियों तथा सामाजिक बहिष्कार के निर्मूलन के लिए न केवल ग्रामों व शहरों में सभाएँ, कार्यशाला, व्याख्यान व सेमीनार आयोजित करते हैं बल्कि विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व सूझबूझ विकसित करने के लिए विद्यालयों, एन.सी.सी., एन.एस.एस. शिविरों में भी विद्यार्थियों को वैज्ञानिक जानकारी दी जाती है।
    डॉ. मिश्र ने कहा भूत-प्रेत जैसी मान्यताओं का कोई अस्तित्व नहीं है। भूत-प्रेत बाधा व भुतहा घटनाओं के रूप में प्रचारित घटनाओं का परीक्षण करने में उनमें मानसिक विकारों, अंधविश्वास तथा कहीं-कहीं पर शरारती तत्वों का हाथ पाया गया। आज टेलीविजन के सभी चैनलों पर भूत-प्रेत, अंधविश्वास बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित हो रहे हैं। ऐसे धारावाहिकों का न केवल जनता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि छोटे बच्चों व विद्यार्थियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इस संबंध में हमने राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वेक्षण कराया है जिसमें लोगों ने ऐसे सीरीयलों को बंद किये जाने की मांग की है। ऐसे सीरीयलों को बंद कर वैज्ञानिक विकास व वैज्ञानिक दृष्टिकोण बढ़ाने व विज्ञान सम्मत अभिरूचि बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित होना चाहिए। भारत सरकार के दवा एवं चमत्कारिक उपचार के अधिनियम 1954 के अंतर्गत झाड़-फूँक, तिलस्म, चमत्कारिक उपचार का दावा करने वालों पर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है। इस अधिनियम में पोलियो, लकवा, अंधत्व, कुष्ठरोग, मधुमेह, रक्तचाप, सर्पदंश, पीलिया सहित 54 बीमारियाँ शामिल हैं। लोगों को बीमार पडऩे पर झाड़-फूँक, तंत्र-मंत्र, जादुई उपचार, ताबीज से ठीक होने की आशा के बजाय चिकित्सकों से सम्पर्क करना चाहिए क्योंकि बीमारी बढ़ जाने पर उसका उपचार खर्चीला व जटिल हो जाता है।
     डॉ. मिश्र ने कहा अंधविश्वास, पाखंड एवं सामाजिक कुरीतियों का निर्मूलन एक श्रेष्ठ सामाजिक कार्य है जिसमें हाथ बंटाने हर नागरिक को आगे आना चाहिए। 
डॉ. दिनेश मिश्र
नेत्र विशेषज्ञ
लेख  कोरोना वायरस ,जानकारी,बचाव और अंधविश्वास # कोरोना,गौमूत्र, गोबर, और अंधविश्वास.


# कुछ समय से विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है जिसमें दुनिया भर के 200 से अधिक देशों के नागरिक संक्रमित हो चुके हैं ,भारत के भी विभिन्न प्रदेशों के किसी ना किसी हिस्से से मरीजों के कोरोना से संक्रमित होने की खबरें सुनाई पड़ती है,अब तक 5 हजार से अधिक लोग संक्रमित पाए गए हैं,169 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी है,सभी स्थानों में लॉक डाउन हो चुका है,कुछ स्थानों पर कर्फ़्यू भी लगा दिया गया है.

पूरे विश्व में 14 लाख से अधिक लोग कोरोना के संक्रमण के शिकार हुए हैं ,89 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है और बहुत सारे लोग अभी भी अस्पतालों में भर्ती है, जो अस्पतालों में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

मीडिया के प्रचार-प्रसार से कोरोना की चर्चा लगभग सभी जगह पहुंच चुकी हैं इसके संबंध में लोग आशंकित भी हैं ,अपने स्वास्थ्य को लेकर, अपनी जान को बचाने के लिए।

*अंधविश्वास व भ्रम के बजाय वैज्ञानिक तरीके से हो बात,
. ऐसे में जब पूरे लोगों को सही वैज्ञानिक तरीके से कोरोना के फैलने, उसके संक्रमण, उसका उपचार ,उसका बचाव के बारे में बातचीत होना चाहिए तब बहुत सारे लोग इस वायरस संक्रमण के बारे ,उसके उपचार के बारे में भी अजीबोगरीब बातें फैला रहे हैं और अंधविश्वास तथा भ्रम फैला रहे हैं,साथ ही सावधानियां , लॉक डाउन एवं सोशल डिस्टेन्स बनाये रखने के नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं.जो कि उचित नहीं है.

जैसे कोई गोमूत्र पिलाने से ,तो कोई गाय का गोबर से नहाने से ,कोई ताबीज पहनाने से तो कोई झाड़ फूंक करने से,तो कोई हर्बल टी पीने,तो कोई विशेष गद्दे में सोने से संक्रमण खत्म करने की बात प्रचारित कर रहे हैं. तो कुछ धार्मिक गुरु तो कोरोना के अस्तित्व, व खतरे से ही इंकार कर रहे हैं, जो कि उनके साथ ही पूरे जन स्वास्थ्य के लिए खतरा उत्पन्न कर सकते हैं

किसी भी स्वयंभू बाबा,के द्वारा फैलाये गए प्रपंच में फंसने के पहले जरा सोचिए ,कि यदि गौमूत्र पीने,गोबर से नहाने से,किसी झाड़ फूंक,ताबीज,चाय,गद्दे में सोने से कोरोना या कोई बीमारी ठीक होती तो हमारे प्रधानमंत्री  और स्वास्थ्य मंत्री   नागरिकों को साफ सफाई से रहने ,बार बार हाथ धोने,सोशल डिस्टेंस, दूरी बना कर रहने देने की सलाह देने की बजाय नेशनल मीडिया में नागरिकों को गौमूत्र पीने,गोबर में लेट कर ठीक होने ,ताबीज,झाड़ फूँक का नायाब इलाज खुद क्यों नहीं बताते।

अन्य देशों की तरह भारत सरकार भी इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा वताये गए प्रोटोकाल का ही पालन कर रही है,
पिछले दिनों दिल्ली के पास एक तथाकथित बाबा चक्रपाणी ने कोरोना वायरस के संक्रमण को खत्म करने के लिए गोमूत्र पार्टी आयोजित की, तो कहीं कुछ लोगों को गोबर से भरे गड्ढे में डुबकी मारते ,लगाते भी देखा गया।एयरपोर्ट में आने वाले लोगों को गौमूत्र पिलाने,गोबर से नहलाने की मांग की और कुछ लोगों को पिलाया.साथ ही भारत ही नहीं विदेशों से भी इलाज केअजीबोगरीब दावे सामने आने लगे।दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज जमात में तो मुस्लिम समुदाय के हजारों लोगों ने एक स्थान पर एकत्र होकर कुछ दिनों तक सार्वजनिक कार्यक्रम किया और उसके बाद अपने अपने प्रदेशों में चले गए,अनेक लोगों को बाद में सरकार ने निकाला,जिसमें से सैकड़ों लोग कोरोना संक्रमित पाए गए,और देश भर में मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ी.

जबकि राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकाल के चलते देश भर में सामाजिक, धार्मिक कार्यक्रम, खेल, क्रिकेट मैच, समारोह,स्थगित किये जा चुके है,राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों ने भी अपने अपने सार्वजनिक कार्यक्रम स्थगित कर दिए है,,मंदिर,मस्जिद, चर्च,मॉल,ट्रेनें, फ्लाइटस्कूल, कॉलेज बन्द हो चुके है,, यही हालत विदेशों में भी है।

कोरोना से बचाव के लिए नागरिको से भीड़ भाड़ में न जाने,साथ सफाई से रहने,हाथ धोने,की बार बार सलाह दी जा रही है तब गौ मूत्र,पार्टी,गोबर के सामूहिक कार्यक्रम,मरकज जमात सहित किसी भी संस्था द्वारा सार्वजनिक आयोजन कैसे उचित ठहराया जा सकता है।
पुलिस ने उत्तर प्रदेश में एक तथाकथित बाबा को कोरोना से मुक्ति का ताबीज बेचते भी हिरासत में लिया और कोरोना की झाड़ फूंक करके स्वस्थ करने वाले कुछ बैगा भी सामने आये, इसके साथ ही विभिन्न प्रकार के तरीकों से अलग-अलग स्थानों में काम कर रहे कतिपय लोगों ने देसी विदेशी तौर तरीके प्याज ,लहसुन, नीबू से भी कोरोना को खत्म करने की बात और दावे किये जाने लगे।

जिन देशों से कोरोना के पॉजिटिव मामले मिले है और उन देशों में भी जहां काफी लोगों की मृत्यु हुई है,उनके सम्बन्ध में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने  भी वर्तमान में इस संक्रमण से कोई उपयुक्त दवा उपलब्ध ना होने वैक्सीन उपलब्ध ना होने की बात कही है और लोगों से इस संक्रमण के फैलने से बचाव करने की बात ही कही है, पर उसके बाद भी अलग अलग किस्म के भ्रामक दावे सामने आते हैं।

कोरोना एक प्रकार का वायरस
यहां यह बताना जरूरी है कि कोरोना एक प्रकार का वायरस है,जिसे खोजा बहुत पहले जा चुका था,पर महामारी अभी हुई है ,कोरोना  वायरस जिसे कोविड 19 का नाम दिया गया है,इसके संकमण में, पहले तो कुछ समय तक व्यक्ति लक्षण प्रकट नही होते पर धीरे धीरे उस व्यक्ति को खांसी बुखार और फेफड़े में संक्रमण होता है, और सांस लेने की तकलीफ के कारण उसकी मृत्यु हो जाती है पर यदि सही समय पर उस व्यक्ति को सही चिकित्सा मिल जाती है तो उसकी जान बचाई जा सकती है ।

कोरोना का यह वायरस हवा के माध्यम से नहीं फैलता बल्कि एक मरीज से दूसरे मरीज में फैल सकता है, इसलिए बचाव के लिए मास्क पहनने ,एक से दूसरे रोगी से हाथ नहीं मिलाना ,हाथों को बार-बार सैनिटाइजर,साबुन ,पानी से धोने से बचाव के तरीके विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं चिकित्सकों द्वारा कही जा रही है, ताकि उसका फैलाव कम हो सके। तथा यदि किसी व्यक्ति को हुआ भी है तो उसे अपने आप को अलग-थलग कर लेना चाहिए, ताकि उसके माध्यम से घर के दूसरे व्यक्तियों में संक्रमण न फैले।
अभी भी जानकारी के अभाव डर और भ्रम के कारण कुछ मरीजों ने ना तो अपने संक्रमित होने की बात जाहिर की बल्कि कुछ लोग तो अस्पतालों में भर्ती होने के बाद भी लापता हो गए ,जिन से दूसरे व्यक्तियों को संक्रमण फैल सकता है इसलिए आवश्यक है कि इस संबंध में व्यक्ति को ईमानदारी से सोच समझकर न केवल अपना खुद का बचाव करना चाहिए, बल्कि दूसरे लोगों पर भी संक्रमण न फैले इसके बारे में सावधानियां सुरक्षित एवं सुनिश्चित करना चाहिए।

गोबर, गोमूत्र की सच्चाई
अब बात करनी पड़ेगी जो लोग गोमूत्र पीने से संक्रमण ठीक होने की बात कर रहे हैं, क्या इसमें कोई सच्चाई है तथा जो लोग गोबर के उपयोग से कोरोना के खत्म होने की बात करते हैं,क्या उसमें कोई सच्चाई है, गाय,भैंस,बकरी, मनुष्य, ऊंट,आदि स्तनपायी प्राणी है जिसमें से गाय, भैंस,के दूध का उपयोग हम पीने करते हैं,उसी प्रकार कुछ स्थानों में बकरी,के दूध ,तो राजस्थान के कुछ इलाकों में ऊंटनी के दूध का प्रयोग भी लोग करते हैं गाय का दूध भारत में सहजता से उपलब्ध है।

स्थानीय धार्मिक मान्यताओं के चलते गाय को माता का दर्जा दिया है,पर दूसरी बात है जिस प्रकार मनुष्य एक स्तनधारी प्राणी है और भी बहुत सारे स्तनधारी प्राणी ,क्या हम उनका मूत्र एवं मल बीमारियों के इलाज के लिए काम में लाते हैं, मनुष्य एवं सभ्य स्तनधारी प्राणी जो भी पानी पीते है वह शरीर में आवश्यकतानुसार उपयोग हो कर किडनी के द्वारा मूत्र के रूप में बाहर निकलता है तथा जो खाद्य पदार्थ ग्रहण करते हैं ,उसमें से भोजन के पाचन के बाद जो पदार्थ आहार नली में बचता है वह धीरे धीरे मलाशय से होते हुए मल के रूप में बाहर निकलता है।

उसी प्रकार गाय ,भैस भी जो पानी पीती हैं, खाना खाती है और वह उसके शरीर में किडनी और मलाशय से बाहर निकलकर मूत्र एवं मल के रूप में बाहर निकलता है, इसका किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी बीमारी के इलाज में उपयोग करने में कितनी समझदारी है।

क्या है सच्चाई,
अलग-अलग क्षेत्रों में लोग उपलब्ध पशुओं का दूध पीते हैं जो कि वास्तव में उन पशुओं की संतानों के लिए उनके शरीर में बनता हैं पर क्या भैंस के मूत्र और बकरी के मूत्र और मल का ऊंटनी के मूत्र और मल का मनुष्य के मूत्र और मलका उपयोग करोना या किसी भी संक्रमण अथवा अन्य बीमारी के लिए करते हैं जो गाय के मूत्र ,मल का करने लगते हैं।

जबकि गाय या किसी प्राणी के मूत्र,गोबर से बीमारियों के ठीक होने के सम्बंध में न ही वैज्ञानिक तौर पर कोई परीक्षण हुए है,न कोई खोज हुई है,किसी रिसर्च पेपर में,यहाँ तक गूगल में भी इस सम्बंध में किसी सही वैज्ञानिक रिसर्च का उल्लेख नहीं है।सिर्फ मिथकों ,कही सुनी बातों,के आधार पर ही पूरा प्रोपेगैंडा रचा हुआ है।

अंधविश्वास निर्मूलन अभियान के चलते मेरा ग्रामीण अंचल में जाना होता है जिन गोशाला में और जहां पर एक से अधिक गाय हैं ,वहां भी पर यदि गाय के मल और मूत्र को नियमित रूप से नहीं फेंका जाता तो वहां पर उसमें मक्खी ,मच्छर, कीड़े,संक्रमण एवं इतनी दुर्गंध आने लगती है कि बाहर से ही वहां सांस लेना मुश्किल जाता है,और उससे गांव में संक्रमण फैलने की आशंका रहती है ।

इसलिए अनेक स्थानों में इंसानों और पशुओं के लिए भी अलग अलग तालाब बनाये जा रहे ताकि संक्रमण न फैले, क्योंकि वास्तव में मूत्र एवं मल अपशिष्ट पदार्थ है जो अनुपयोगी होने के कारण हर प्राणी अपने शरीर से नियमित रूप से बाहर निकालता है।

न तो यह कोई औषधिक पदार्थ है पर कुछ आस्था और कुछ अंधविश्वास के कारण लोग भ्रम में पड़े रहते हैं और दूसरों को भी भ्रम में डालने काम  किया करते हैं ।
गाय सहित किसी भी पशु के मल मूत्र, पसीने, आंसू,नाक,कान से स्त्रावित होने वाले अनुपयोगी पदार्थ से मनुष्य पशुओं की किसी भी बीमारी के ठीक होने यह रुकने के बाद भी एक मिथक ही है । जिस प्रकार अन्य वायरल संकमण फैलते है ।

उसी प्रकार कोरोना भी एक प्रकार का वायरस है जिसके संकमण से  सावधानी पूर्वक रहने पर बचा जा सकता है ,तथा समय रहते डॉक्टरी सलाह,व उपचार से संक्रमण से ठीक हुआ जाना संभव है ,दहशत,डर ,भ्रम एवं अंधविश्वास का शिकार होने से बचे।

पूरे विश्व मे इस वायरस का संक्रमण फैल चुका है,लेकिन अब तक इसका निश्चित इलाज कहीं भी उलब्ध नही है, अभी कुछ देश मे इसके वैक्सीन बनाने के प्रयास चल रहे है,उम्मीद है,इसमें सफलता जरूर मिलेगी,और अन्य महामारियों की तरह इससे भी निपटने में सफल होंगे।

 डॉ. दिनेश मिश्र, नेत्र विशेषज्ञ अध्यक्ष अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति