अंधविश्वास,डायन (टोनही) प्रताड़ना एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनजागरण

I have been working for the awareness against existing social evils,black magic and witchcraft that is prevalent all across the country and specially Chhattisgarh. I have been trying to devote myself into the development of scientific temperament among the mass since 1995. Through this blog I aim to educate and update the masses on the awful incidents & crime taking place in the name of witch craft & black magic all over the state.

Monday, August 27, 2012

नेत्रदान महादान

किसी दृष्टिहीन व्यक्ति के कठिनाई भरे जीवन का अंदाज सिर्फ आप कुछ पलों के लिए अपनी आँखे बंद कर ही लगा सकते है।ऑंखे बंद करते ही जीवन के सुन्दर दृश्य प्राकृतिक छटायें,सूर्य, जल,पृथ्वी,आकाश व जनजीवन के विभिन्न रूप अदृश्य हो जाते है,वहीं मन में एक भय व असुरक्षा की भावना समा जाती है और तत्काल ऑंखे खोलने को मजबूर हो जाते है।प्रकाश व दृष्टि से परे,जीवन का एक दूसरा रूप यह भी जानिए कि पूरी दुनियां में करीब तीन करोड़ लोग पूरी तरह से दृष्टिहीन है।80लाख लोगों की एक आँख खराब है तथा 4-5करोड़ लोग कम दृष्टि के कारण घर से बाहर निकलने मन-माफिक काम करने, चलने फिरने से पूरी तरह बाधित है।
   प्रकृति ने जीव को दृष्टि एक ऐसा अमूल्य उपहार दिया है जिसकी कोई कीमत नहीं आंकी जा सकती है।जिस अंधकार में हम एक क्षण बिताने की कल्पना नहीं कर सकते,उसी गहन अंधकार में कितने ही लोग जिन्दगी गुजारने को मजबूर है।क्या इनके जीवन में प्रकाश की कोई किरण आ सकती है। इस प्रश्न का उत्तर निःसंदेह हाँ,इनमें से काफी लोग मरणोपरान्त नेत्रदान से लाभ उठा सकते है।आंखो के स्वच्छ पटल अथवा कार्निया में सफेदी आने से होने वाले अंधत्व के इस उपचार के लिए सोलहवीं सदी में ही चिकित्सकों ने प्रयास शुरू किये,पर साधनों की अनुपलब्धता के कारण बात नहीं बनी।विश्व के अनेक हिस्सों में चिकित्सकों ने इस दिशा में काम आरंभ किया।1837से1850के दौरान कुछ नेत्र चिकित्सकों ने पशुओं की कार्निया प्रत्यारोपण का प्रयास किया पर अपेक्षित परिणाम नहीं मिले।1853से1862के मध्य कार्निया की जगह पारदर्शी कांच लगाने के संबंध में भी प्रयास किये गये।सर्वप्रथम सन् 1771में पेलियर डी किन्जसी ने कार्निया के प्रत्यारोपण की परिकल्पना की,कि सफेद व अपारदर्शी कार्निया की जगह साफ-सुथरी स्वच्छ कार्निया प्रत्यारोपण संभव है।सन् 1888में बान हिप्पल ने पहली बार कार्निया प्रत्यारोपण किया।इसके करीब आठ वर्ष बाद 1906में‘‘जिम’’ने माईक्रो सर्जरी तथा सूक्ष्म उपकरणों से कार्निया प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किया।
   नेत्रदान वह प्रक्रिया है जिसमें मानव नेत्रदान द्वारा दान-दाताओं से उनकी मृत्यु के बाद ग्रहण किये जाते हैं।नेत्रदान से प्राप्त इन ऑंखों की स्वच्छ कार्निया को ऐसे दृष्टिहीन व्यक्ति जिनका जीवन कार्निया में सफेदी आ जाने से अंधकारमय हो गया है,को प्रत्यारोपित कर नेत्र ज्योति लौटायी जा सकती है।आमतौर पर नेत्रदान के संबंध में अधिक जानकारी आम नागरिकों को नहीं है।नेत्रदान तथा प्रत्यारोपण में बाधक कौन-कौन सी बाते हैं?जिनकी जानकारी आमजन को होना आवश्यक है, ताकि यहां भी नेत्रदान जैसे पवित्र कार्य का विस्तार हो सके।
   हर स्वस्थ व्यक्ति जिसकी ऑंखे सही सलामत है, नेत्रदान की घोषण कर सकता है।इस हेतु एक शपथ का फार्म भरना होता है जो प्रायः सभी शासकीय चिकित्सालयों,निजी नेत्र विशेषज्ञों के पास उपलब्ध होता है।ऐसे व्यक्ति जो वायरल हिपेटाईटिस,पीलिया,यकृत रोग,रक्त कैंसर,टी.बी.,मस्तिष्क ज्वर,एड्स से संक्रमित होने से नेत्र नहीं लिये जाते।अप्राकृतिक मौत, एक्सीडेन्ट की हालत में मजिस्ट्रेट की अनुमति से नेत्र ग्रहण किये जा सकते हैं।ऐसे दृष्टिहीन व्यक्ति जिनकी आंखों की कार्निया, किसी बैक्टीरिया, वायरल संक्रमण रोग, दुर्घटना, रासायनिक पदार्थो के गिरने जैसे एसिड, क्षार, घाव, अल्सर आदि के बाद सफेद व अपारदर्शी हो गई हो तथा उससे दृष्टि एकदम कम हो गई हो का इलाज नेत्रदान से प्राप्त कार्निया प्रत्यारोपण से संभव है।लेकिन रेटिना या आंखों के परदे की बीमारी, परदा उखड़ना, लेंस की बीमारी, मोतियाबिंद, आप्टिक नर्व की बीमारी व चोटों का इलाज कार्निया प्रत्यारोपण से संभव नहीं है।जिन दृष्टिहीनों की आंख पूरी की पूरी, कैंसर, चोट, या संक्रमण से निकालना पड़ा हो, उन्हें नेत्रदान से लाभ नहीं होता।
   नेत्रदान से प्राप्त आंखों का स्वच्छ पटल या कार्निया जो कि पारदर्शी होती है, का ही उपयोग किया जाता है, इस ऑपरेशन को कार्निया प्रत्यारोपण ही कहा जाता है।एक और महत्वपूर्ण प्रश्न है क्या कार्निया की बीमारी से दृष्टिहीन हुए शत-प्रतिशत मरीजों में कार्निया प्रत्यारोपण संभव है? जी नहीं, कुछ ऐसी भी दशाएं है जैसे कांच बिन्दु काला मोतिया में ऑंखों का दबाव अधिक रहता है जिसके कारण प्रत्यारोपण असफल हो सकता है।दूसरी बात है कि यदि कार्निया की सफेदी के साथ आंख के आंतरिक भाग में भी संक्रमण या इंफेक्शन है तो कार्निया लगाने के बाद पुनः सफेदी आ जाती है।
  हमारे देश में पिछले कई वर्षो से राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है।अगस्त के अंतिम सप्ताह से सितम्बर के प्रथम सप्ताह तक चलने वाला यह पखवाड़ा राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़े के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया जाता है।लेकिन आज भी नेत्रदान की संख्या पिछले कई वर्षो में अंगुलियों में गिनने लायक ही है।जिसके कारण नेत्रदान से लाभान्वित होने वाले मरीजों की संख्या अल्प ही रही। जबकि देश के कुछ प्रदेशों में नेत्रदाताओं की संख्या आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी है।नेत्रदान को महादान की संज्ञा दी गई है, भारत में करीब 25 लाख मरीज कार्निया के रोगों से पीड़ित है जो नेत्रदान से प्राप्त आंख की बाट जोह रहे है,इसमें प्रतिवर्ष 20 हजार दृष्टिहीनों की संख्या जुड़ती जा रही है।जबकि शासकीय व निजी स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रयासों के बावजूद देश में एक साल में करीब बारह हजार नेत्र प्रत्यारोपण के ऑपरेशन हो पाते हैं।श्रीलंका जैसा छोटा देश भी नेत्रदान के मामले में भारत से आगे है।नेत्र बैंकों में नेत्रदान के घोषणा पत्र हजारों की संख्या में भरे रखे हुए है। मृत्युपर्यत्न दान किये जान सकने वालों नेत्रों को भी दान करने में इतना संकोच क्यों?
   पहले तो शिक्षा का पर्याप्त प्रसार न होने से लोगों में तरह-तरह के अंधविश्वास तथा भ्रांतियां जैसे कुछ लोग यह मानते हैं कि नेत्रदान देने से व्यक्ति अगले जन्म में जन्मांध होगा,तो कुछ लोग भावनात्मक कारणों से मृत शरीर के साथ चीर-फाड़ उचित नहीं मानते,तथा नेत्र निकालने की अनुमति नहीं प्रदान करते है।तीसरा कारण है-जागरूकता व सामाजिक जिम्मेदारी का अभाव,कई बार नेत्रदान की घोषणा करने वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उसके रिश्तेदार,परिचित नेत्र बैंक को सूचित नहीं करते। जबकि भारत में दानवीरता के किस्से हमें सुनने को मिलते रहे है।बुद्व दधीचि,बली व कर्ण जैसे दानवीर भारत की जनता के मानव में रचे बसे हैं,उसके बाद भी नेत्रदान की कम संख्या इस पुनीत कार्यक्रम को आगे बढ़ने से रोक रही है।
  नेत्रदान के अतिरिक्त अंग दान में भी अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति बेहद नाजूक है, ब्रेड डेथ के बाद एक व्यक्ति के शरीर के अंग 8 से 9 व्यक्तियों को लगाये जा सकते है, इसके अलावा 40 व्यक्तियों को छोटे छोटे अंग लगाकर उनकी शारीरिक कमियों को दूर किया जा सकता है।ब्रेन डेथ के बाद एक व्यक्ति के लगभग 37अलग अलग अंग व टिशु निकाले जा सकते है इनमें हृदय, लीवर, फेफड़े, किडनी, पैंक्रियाज मुख्य रूप से शामिल है।इंटरनेशनल रजिस्ट्री ऑफ ऑर्गन डोनेशन एण्ड ट्रांसप्लांट के अनुसार प्रति 10लाख की आबादी पर स्पेन में 35.9क्रोएशिया में 33.5,पुर्तगाल में 28.5,अमेरिका में 25.9, आस्ट्रिया में 23.2,आस्ट्रेलिया में 14.9, न्यूजीलैण्ड में 8.6व भारत में 0.05 डोनर है जो कि हमारे जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिये चिंतनीय है।
  क्या नेत्रदान से प्राप्त आंखों को सिर्फ ऐसे मरीजों में ही लगाया जाता है जिन्हें दृष्टि वापस आने की आशा हो ? वास्तव में नेत्रदान से प्राप्त ऑंखों का उपयोग तीन प्रकार से किया जा सकता है।पहला- दृष्टि लाभ के लिये, जब दृष्टिहीन व्यक्ति की कार्निया अपारदर्शी हो, लेकिन ऑंखों के बाकी हिस्से, जैसे लेंस, रेटिना, सामान्य हो, तब मरीज को कार्निया प्रत्यारोपण से दृष्टि लाभ हो सकता है।दूसरा-कार्निया का पुराना घाव या अल्सर जो लंबे समय तक न भर पा रहा हो तब भी कार्निया प्रत्यारोपण किया जाता है, लेकिन इसके तकलीफ में कमी हो जाती है।तीसरी-वजह है जब कार्निया के साथ अंदरूनी हिस्से में भी खराबी हो तब कॉस्मेटिक कारण या सौंदर्य के दृष्टिकोण से स्वच्छ, पारदर्शी कार्निया लगाई जा सकती है।
   कार्निया प्रत्यारोपण के आपरेशन में अच्छे परिणाम के लिए आवश्यक है कि दान देने वाले व्यक्ति की आंखे मृत्यु के उपरांत जल्द से जल्द निकाल ली जावे तथा प्रत्यारोपण का आपरेशन भी यथासंभव शीघ्र सम्पन्न हो सके।फिर भी छह घंटो के अंदर दानदाता के शरीर से नेत्र निकाल लिये जाने चाहिए एवं 24घंटों के अंदर प्रत्यारोपित हो जाने पर अच्छे परिणाम आते हैं।
   कई बार दान की घोषणा के बाद भी दानकर्ता के रिश्तेदार इस आशंका से अस्पताल में खबर नहीं करते कि मृत शरीर की चीर-फाड़ कर दुर्दशा क्यों की जावे।लेकिन इस मानसिकता को बदलना आवश्यक है जो निरंतर प्रचार व जन जागरण से ही संभव है।कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मृतक के परिवार के लोग नेत्रदान के इच्छुक है लेकिन उस स्थान पर नेत्र निकालने के चिकित्सक तथा उन्हें प्रत्यारोपित करने के लिए मरीज उस निर्धारित समयावधि में उपलब्ध न हो तो ऐसे में भी इस कार्यक्रम पर विपरीत असर पड़ता है।जब मैं मुम्बई के कूपर हास्पीटल में कार्यरत था तब हम वहां पर नियुक्त मेडिको सोशल वर्कर को नेत्र बैंक में ऑंख उपलब्ध होने की जानकारी दे देते थे जो फोन, लोकल ट्रेन, बस का सफल करके भी समयावधि में इच्छुक मरीज को अस्पताल में भर्ती कर देते थे।देश के कुछ अस्पतालों में, मेडिको सोशल वर्कर नियुक्त होते हैं जो नेत्रदान करने वाले तथा उन्हें प्रत्यारोपण हेतु मरीज की उपलब्धता की बीच कड़ी को काम करते है।नेत्र बैंक में ऑंख उपलब्ध होने की जानकारी दे देते हैं जो फोन, लोकल ट्रेन, बस का सफल करके भी समयावधि में इच्छुक मरीज को अस्पताल में भर्ती कर देते हैं।
    इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में स्थान-स्थान पर ऐसे सामाजिक संगठनों के सहयोग की आवश्यकता है।आवश्यकता पड़ने पर नेत्रदान व नेत्र प्रत्यारोपण के बीच कड़ी का काम कर सके,न केवल मरणासन्न व्यक्ति के परिवार को उस व्यक्ति के मरणोपरान्त नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित कर सके।बल्कि ऐसे व्यक्ति जिन्हें नेत्र प्रत्यारोपण की आवश्यकता है उन्हें भी नेत्रों के उपलब्ध होने की खबर जल्द से जल्द पहुंचाकर ऑपरेशन के लिए भर्ती करने व मानसिक रूप से तैयार होने में मदद कर सके।इसलिए निरंतर प्रचार व जन जागरण की आवश्यकता है। 
    आज सभी देशों में यह कार्य सफलतापूर्वक चल रहा है।वर्तमान में हमारे देश में 150 से अधिक नेत्र बैंक है।देश के कई भागों में जैसे-मुम्बई, मद्रास, गुजरात, नवसारी, दिल्ली में नेत्रदान काफी होते है तथा नेत्र बैंक काफी अच्छे ढंग से चल रहे है।इस संबंध में समाजसेवी संस्थाओें, समाचार पत्रों, मीडिया का सम्मिलित सहयोग लिया जा सकता है, उन्हें नेत्रदान जैसे पवित्र कार्य में अधिक सक्रिय किया जा सकता है।

No comments: